मैं एक मिथक हूँ सखि
मुझे जानना उपनिषदों में गहरे उतरना है
आसान होता है किसी धर्म को उसकी स्थूलता में पकड़ना
अपनी आस्थाओं का विज्ञापन करना
इसे दर्शन
यह मानोगी तो गहरे उतरोगी
मैं एक भ्रम हूँ सखि
मुझे छूना मृगमरीचिका है
कितना भागोगी मेरे पीछे, निर्मल नद की चाह में
बहुत कठिन है, छायाओं के आर-पार उतरना
प्रेम है मेरा धर्म
जितना जानोगी उलझ जाओगी
मैं एक आहट हूँ आगत की
मेरे सिरहाने दर्शन है, पैताने कला
एन वक्ष पर कौस्तुभमणि-सा सजा प्रेम है
वारुणी की हल्की हिलोर है तुम्हारा असमंजस
सुनोगी तो मान पाओगी
सखि, मैं प्रतिच्छाया नहीं तुम्हारी
मैं स्वयं संपूर्ण हूँ,
सूर्य अग्नि पुष्प बन मेरे अलकपाश में गुँथा है
चाँद कंगन में सजता है
समुद्र मेरी राह तकते हैं,
पर्वत ऊँघते हैं प्रतीक्षा में मेरी
मिलोगी तो जान जाओगी
मत खेलो खेल सखि
मैं जीतने के लिए नहीं हारने के लिए खेलती हूँ
मत बिछाओ बिसात बातों की
मेरे शब्द जब पां से बनते हैं, लोग अर्थ हार जाते हैं
खेलोगी तो जीत कर भी हार जाओगी।
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