मैं उस आदमी को जानता हूँ (कविता)

मैं उस आदमी को जानता हूँ
नित्य नई आशा में
वह बिछाता है अपनी चादर
फटे-चीकट दुशाले को ओढ़कर सर्दी में
कहता है
अगर ईश्वर कहीं होता तो हमारी मदद करता

किस देवता को पूजूँ
एक के लिए तो अगरबत्ती नहीं जुटा सका
दूसरे के बारे में क्यों सोचूँ

सब ठीक हो जाएगा
क्योंकि इससे बुरा तो अब क्या होगा


रचनाकार : ऋतुराज
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