मकर संक्रांति (गीत)

संक्रांति का पर्व है पावन, सबके मन को भाता है।
पोंगल, लोहड़ी, खिचड़ी, बीहू, मकर संक्रांति कहलाता है॥

मकर राशि में जाकर सूरज, उत्तरायण हो जाता है।
संक्रांति की सूर्य रश्मियाँ, सबको स्वस्थ बनाता है॥
भिन्न-भिन्न रूपों में देश यह, माघी पर्व मनाता है।
संक्रांति का पर्व है पावन, सबके मन को भाता है॥

नाम अनेक त्यौहार एक है, पर्व ना ऐसा दूजा है।
फ़सलों का त्यौहार है पावन, सूर्य देव की पूजा है॥
तिलकुट गजक रेवड़ी खिचड़ी, बल आरोग्य बढ़ाता है।
महापर्व संक्रांति है पावन, सबके मन को भाता है॥

धनु राशि को छोड़ सूर्य जब उत्तरायण में आते हैं।
शुभ मुहूर्त का प्रारम्भ होता, दिवस बड़े हो जाते हैं॥
पितरों का तर्पण इस दिन, बंधन मुक्ति प्रदाता है।
महापर्व संक्रांति है पावन, सबके मन को भाता है॥

जप तप ध्यान दान पर्व में, शतोगुणी फलदायक है।
संगम सागर नदियों में, स्नान पाप का नाशक है॥
‘तिल गुड़ लो, मीठा बोलो’, पर्व यही सिखलाता है।
संक्रांति का पर्व है पावन, सबके मन को भाता है॥


रचनाकार : उमेश यादव
लेखन तिथि : 2024
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