मानव जीवन (कविता)

कौन हैं हम, क्यों हैं हम?
इसका जवाब ढूँढ़ते हैं हम।
जैसा देखते हैं हम,
जैसा सोचते हो तुम।
वही हूँ मैं और वही हो तुम।

क्या मिला, हमे किसकी है तलाश?
धन-दौलत और रहने को घर,
तन पर कपड़े और खाने को पेट भर।
और ज़्यादा, और ज्यादा, बस भी करो अब।
मन की शांति और तन की ताक़त,
यह अर्जित करोगे कब?

जीवन का यही सार है,
सुख और दुख का साथ है।
जो पाया है यहीं खोना है,
फिर किस बात का रोना है?


रचनाकार : दीपक झा 'राज'
लेखन तिथि : 14 अप्रैल, 2006
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