मानव परिकल्पना (कविता)

ये दुनिया
सूरज, चाँद, तारे
है अनंत ब्रह्माण्ड न्यारे।

मानव की है परिकल्पना अधूरी
बार-बार करते वो सिद्धि पूरी।
कभी ग्रह नक्षत्रों की खोज में जाए
कभी पृथ्वी के गर्भ गृह सागर मथ आए।

कुछ ढूँढ़े कुछ सोचें विचारें
मानव की परिकल्पना है न्यारे
जीवन अद्भुत ये हैं सँवारें
सभ्य समाज की आवाज़
आवाम है पुकारें।
ये दुनिया चाँद तारे
है अनंत ब्रह्माण्ड न्यारे।


रचनाकार : विनय विश्वा
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