साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3563
आगरा, उत्तर प्रदेश
1860 - 1928
मनू जी तुमने यह क्या किया? किसी को पौन, किसी को पूरा, किसी को आधा दिया सरस प्रीति के थल में बोया बिस-अनीति का बिया लुब्ध पाप का, क्षुब्ध शाप का स्यापा सिर पर लिया मनू जी तुमने यह क्या किया? और अधिक क्या कहें बाप जी, कहते दुखता हिया जटिल जाति का, अटल पांति का जाल है किसका सिया मनू जी तुमने यह क्या किया?
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