आँखों मे डर का ख़ौफ़,
दिल मे भयानक मंज़र,
मन मे अप्रत्याशित आशंका,
और जीवन से मोह भंग–
निविड़ता से उत्पन्न
दुःख की ऐसी सूक्ष्म अनुभूतियाँ है–
जो आत्मा को महाशून्य में ले जाती हैं।
जिसकी मर्म स्मृतियाँ;
किसी धुँधले आकृतियों में
देखा जा सकता है;
हल्के स्पंदन के साथ।
भवितव्य की चीख़,
वर्तमान का गला चीर देती।
यथार्थ का ताडंव-नर्तन,
प्रारब्ध के चक्र को;
एक सूनी पथ पर ला छोड़ता है।
जहाँ लक्ष्य के सभी द्वार,
अकस्मात; दूर से ही
बंद नज़र आते हैं।
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