मटके का पानी (कविता)

कुँआ खोदता कौन है?
हल जोतता कौन है?
घर बनाता कौन है?
मवेशियाँ चराता कौन है?
पसीने से सिंचित
इन सब से सुख उठाता कौन है?

मैं अछूत हूँ
यह तमग़ा दिया कौन है ?

आज पूरा भारत सदमे में है?
नहीं! भला क्यूँ?
यह सदियों की परंपरा है,
इस परंपरा को तोड़ेगा कौन?
भगवान
देवी देवता
सरकारें
कोई नहीं आएगा।

एक ही मटके से पानी के लिए
ऐ! अछूत
उठ संघर्ष कर
तब तक लड़ जब तक
समानता न आ जाए।


लेखन तिथि : 17 अगस्त, 2022
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