मौत के ब'अद भी तो चलता है (क़ितआ)

मौत के ब'अद भी तो चलता है
ज़िंदगी तेरे जब्र का नाटक
फूल हँसते हुए ही जाते हैं
शाख़ से बाग़बाँ की झोली तक


रचनाकार : वसीम बरेलवी
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