मज़मूँ मेरे दिल में बे-तलब आते हैं
क़ुदसी तबक़-ए-नूर में दबे जाते हैं
कुछ और नहीं इल्म मुझे इस के सिवा
कहता हूँ वही जो मुझ से कहलवाते हैं

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