साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
भोजपुर, बिहार
1965
पहाड़ों के पीछे से आई बाघ की हुंकारऽऽऽ मैं काँप गया डर मत कहा रामदाना बेचने वाले बूढ़े ने पहाड़ी के पीछे बाघ-बाघिन कर रहे हैं प्यार।
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें