मेरे सूर्य (कविता)

मेरे लिए कौन नदी निकलेगी
कौन पेड़ मेरे लिए फल देगा
पश्चिम के पहाड़ की तरह भारी है
मेरे दुःख

वेतन
जैसे पेड़ पर उड़ जाती हो धूप में
मदार की रूई

बिच्छू के डंक-सा चढ़ रहा है झन्न-झन्न अँधेरा
कौड़ी पकड़ लहर मारता है ज़हर

मेरे जूते कौन पहनेगा यहाँ
किसके सिर होगी मेरी पगड़ी
पश्चिम के पहाड़ की तरह भारी हैं
मेरे दुःख

यहाँ मत डूबना—
अभी मत डूबना मेरे सूर्य।


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