सावन ने ली जब अँगड़ाई,
तब सुधि आई है मधुकर को।
चौंक गई मैं उन्हें देखकर,
लौटे पिया अचानक घर को।
प्यासी नज़रें सबसे चोरी,
कनखियों से निहार रहे हैं।
आलिंगन को बड़ी जल्दी है,
इशारे से समझा रहे हैं।
भर जाऊँ उनके बाहों में,
औ' ख़ूब निहारूँ रहबर को।
चौंक गई मैं उन्हें देखकर,
लौटे पिया अचानक घर को।
मुंडेर पर बैठे काग को,
दूध-भात रोज़ खिलाती थी।
कब आएँगे मेरे साजन,
रच-रच पाती लिखवाती थी।
एक विरहन की वेदना ने,
अहसास कराई दिलवर को।
चौंक गई मैं उन्हें देखकर,
लौटे पिया अचानक घर को।
झूम उठा है मन मंदिर पर,
रूठकर नखरें दिखाऊँगी।
अब न सहन करूँगी जुदाई,
लिपट कर रो-रो बताऊँगी।
जीवन ही है जीवन साथी,
रहस्य समझाऊँ प्रियवर को।
चौंक गई मैं उन्हें देखकर,
लौटे पिया अचानक घर को।
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