साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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नई दिल्ली, दिल्ली
1976
मिलेगी एक दिन मंज़िल अभी यह आस बाक़ी है। अजी मक़सद अभी तो ज़िंदगी का ख़ास बाक़ी है।।
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