मोहब्बत तिश्नगी भी है नशा भी (ग़ज़ल)

मोहब्बत तिश्नगी भी है नशा भी
सनम पत्थर भी है और है ख़ुदा भी

फ़क़त इनआ'म ही देते रहे हो
किसी ग़लती पे दो मुझ को सज़ा भी

मिरे ख़्वाबों में है हमराह लेकिन
दिखाता है मुझे वो आइना भी

मैं इक सहरा हूँ जिस की हद नहीं है
मिरे अंदर भटकता है ख़ुदा भी

तख़य्युल में बस इक ही ख़्वाब को रख
वही देगा तुझे तेरा पता भी

बुलाएगा मुझे जब मेरा आशिक़
तो भर जाएगा अंदर का ख़ला भी

जुदा जो मुझ को मुझ से कर रहा है
ख़ुदा कर ले क़ुबूल उस की दुआ भी

तिरे दीदार का तालिब हूँ 'ज़ाहिद'
मगर मर्ग़ूब है मुझ को अना भी


रचनाकार : ज़ाहिद अबरोल
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