मृत्यु (कविता)

मृत्यु
जैसे कि एक गुलदस्ता
टूटकर बदलता सृष्टि के बग़ीचे में
मृत्यु
जैसे कि एक झरना
एक क्षण ठहर
उद्याम वेग से
आगे बढ़ता समुद्र की ओर।


रचनाकार : उद्‌भ्रान्त
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