मुद्दतों बाद हम किसी से मिले (ग़ज़ल)

मुद्दतों बाद हम किसी से मिले
यूँ लगा जैसे ज़िंदगी से मिले

इस तरह कोई क्यूँ किसी से मिले
अजनबी जैसे अजनबी से मिले

साथ रहना मगर जुदा रहना
ये सबक़ हम को आप ही से मिले

ज़िक्र काँटों की दुश्मनी का नहीं
ज़ख़्म फूलों की दोस्ती से मिले

उन का मिलना भी था न मिलना सा
वो मिले भी तो बे-रुख़ी से मिले

दिल ने मजबूर कर दिया होगा
जिस से मिलना न था उसी से मिले

उन अँधेरों का क्या गिला 'मख़मूर'
वो अँधेरे जो रौशनी से मिले


रचनाकार : मख़मूर सईदी
यह पृष्ठ 410 बार देखा गया है
×


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें