न रहा ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मुझ को
अब न छेड़ ऐ बहार तू मुझ को
अब अगर हैं कहीं तो दें आवाज़
क्यूँ फिराते हैं कू-ब-कू मुझ को
अब किसी और की तलाश नहीं
है ख़ुद अपनी ही जुस्तुजू मुझ को
न रहा कोई तार दामन में
अब नहीं हाजत-ए-रफ़ू मुझ को
हाए उस वक़्त हाल-ए-दिल पूछा
जब न थी ताब-ए-गुफ़्तुगू मुझ को
अगली रचना
ज़बानों पर नहीं अब तूर का फ़साना बरसों सेपिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें