नारी उत्पीड़न (कविता)

नारी की नियति अस्मिता पर, जब प्रश्न उठा तुम मौन हुए।
जीवन भर बंदिश में रहना, तुम कहने वाले कौन हुए।

सदा प्रताड़ित होती नारी, क्या उसका सम्मान नहीं है।
द्रुपद सुता का चीर हरण क्या, नारी का अपमान नहीं है।

समय-समय पर जग ने केवल, नारी को संत्रास दिए हैं।
बलत्कार, उत्पीड़न, हत्या, जैसे नित परिणाम दिए हैं।

क्यों शर्म नहीं तुमको आती, अबला पर हाथ उठाते हो।
क्या दोष नारियों का है जो, तुम गाली तक ले आते हो।

जग ने उपहास किया केवल, है नारी के अपमानों का।
मगर कथानक भूल गए सब, नारी के बलिदानों का।

भूल गए इतिहास पृष्ठ पर, स्वर्णिम लिखी कहानी को।
तुम भूल गए हो पन्ना, लक्ष्मी, और पद्मिनी रानी को।

कर याद कल्पना बेटी को, किंचित न कभी भयभीत हुई।
कर सफ़र अंतरिक्ष का पूरा, अंततः उसी की जीत हुई।

कर गईं विश्व में नाम अमर, ऐसी हैं भारत की नारी।
तुम इन्हे प्रताड़ित करते हो, तुम कायर हो अत्याचारी।

कुछ बंधन में हूँ बँधी हुई, मत समझो तुम कमज़ोर मुझे।
मैं आदिशक्ति माँ काली हूँ, समझो ना कच्ची डोर मुझे।


लेखन तिथि : 20 अक्टूबर, 2022
यह पृष्ठ 219 बार देखा गया है
×

अगली रचना

मेरे पापा


पीछे रचना नहीं है
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें