नैतिकता की बात करें क्या
मन में गाँठ लगी।
कालोनी में मन-मुटाव का
जंगल ऊगा है।
मन में पश्चाताप लिए
फिर सूरज डूबा है।।
खेल-कूद में रमे हुए थे
जमकर डाँट लगी।
जैसे कि शहरों की
सड़कों में भागम-भाग है।
हैं दिशाएँ आतंकित
सहमा-सहमा फाग है।।
बड़े-बड़े घरानों में यानि
उलटी टाट लगी।
हुए बुलंद हौसले हैं
चलते तूफ़ानों के।
आला-अफ़सर हुए मगर
हैं कच्चे कानों के।।
मँझधारों से जूझ-जूझ कर
नाव घाट लगी।
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