नदी भी ख़ूब है 
यह दो किनारों के बीच ही क्यों बहती है हमेशा 
क्या यह तट के बिना नहीं रह सकती 
और फिर दो ही तट क्यों?... एक क्यों नहीं। 
—किनारों को क्या पड़ी है 
कि उसे हर समय मर्यादित करें 
किनारों को क्या ग़रज़ कि हर घड़ी करते रहें तीमारदारी 
किनारे कौन होते हैं उसे बाँधने वाले, घेरने वाले 
नदियाँ... कब तक चलेंगी इन बैसाखियों पर 
उठो, चलो, बहो अब अपने ही मन से... मुक्त। 
—मगर टेर को कभी अनसुना मत करना।