साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
1935
पथरीली चट्टानों में से चुपके से निकल आती है नदी इतने चुपके से कि उसे याद करना मुश्किल होता है और जब हम उसे भूलना चाहते हैं वह अक्सर याद आती है किसी दूसरे तीसरे नाम से
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