नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है (ग़ज़ल)

नदीम-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बड़ा सहारा है
जभी तो ये ग़म-ए-दौराँ हमें गवारा है

ज़माना कहता है हंगामा-ए-हयात जिसे
मिरे हुजूम-ए-तमन्ना का इस्तिआ'रा है

जो मेरे दिल को है आतिश-कदा बनाए हुए
वो सोज़ उन की नज़र का ही आश्कारा है

अकेला छोड़ के तूफ़ान को गुज़र जाए
ये बे-रुख़ी मिरी कश्ती को कब गवारा है

न जाने मौज-ए-तबस्सुम है या कोई आँसू
फिर उन के होंट पे बेताब इक सितारा है

मजाल-ए-इश्क़ कहाँ थी कि हम को करता ख़ाक
हमें तो ज़ीस्त की पामालियों ने मारा है

वफ़ा-ए-दोस्त की मस्ती नसीब है 'साग़र'
जफ़ा-ए-दहर फ़क़त इस लिए गवारा है


  • विषय : -  
यह पृष्ठ 303 बार देखा गया है
×

अगली रचना

हैरत से तक रहा है जहान-ए-वफ़ा मुझे


पिछली रचना

नग़्मे हवा ने छेड़े फ़ितरत की बाँसुरी में
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें