भला कैसे दे पाओगे मुझे
मेरे युग से विलग करके
कोई एक अन्होता युग
मेरे मन माफ़िक़
इसी दुनिया से काटकर
जिसमें न बाज़ार हो
न प्रदूषण हो
न धोखा-फ़रेब हो,
न गला काट प्रतियोगिता हो
जिसमें बस ईमान हो, सत्य हो,
अहिंसा हो, विश्रांति हो, सुकून हो,
न्याय हो, सदाचार हो!
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।