नहीं दे पाओगे (कविता)

भला कैसे दे पाओगे मुझे
मेरे युग से विलग करके
कोई एक अन्होता युग
मेरे मन माफ़िक़
इसी दुनिया से काटकर
जिसमें न बाज़ार हो
न प्रदूषण हो
न धोखा-फ़रेब हो,
न गला काट प्रतियोगिता हो
जिसमें बस ईमान हो, सत्य हो,
अहिंसा हो, विश्रांति हो, सुकून हो,
न्याय हो, सदाचार हो!

हे ईश्वर!
मैं नाउम्मीद हूँ

मुद्रा-लोक में
मैं तुम्हारी अक्षमताएँ जानता हूँ।


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