नहीं है जगह (कविता)

आप जो चले आ रहे हैं
इस तरह दनदनाते हुए
नाक पर चश्मा चढ़ाए
ऐंठी हुई गरदन ग़ुरूर में
‘हेलो ब्रदर’ कहकर
ऐसे तो नहीं घुस सकते आप मेरी कविता में
नहीं है, नहीं है जगह आपके लिए यहाँ
कोई तो जगह बची रहे आपसे!

जैसे आए हैं नाक की सीध में
वैसे ही लौट जाइए श्रीमान
ब्रीफ़केस झुलाए शेयर बाज़ार में
क्लब में—बार में
सोसायटी—सेमिनार में
फ़ॉरेन टूर पर निकल जाइए कहीं
लेकिन यहाँ नहीं

क्या सोचकर चले आए आप यहाँ ‘हेलो’ करते हुए

कविता बिज़नेस प्रमोशन का मामला नहीं है जनाब
पढ़े होते कबीर को तो पता होता आपको
यह ख़ाला का घर नहीं है जनाब

जाइए-जाइए
देखिए कंप्यूटर-स्क्रीन पर
अपने ग्राफ़ की सीढ़ियाँ
नाहक़ चले आए आप यहाँ
एक अनचाही छींक की तरह।


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