साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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कानपुर, उत्तर प्रदेश
1944
जोगन, नैन मिले अनमोल, ओस कनों से कोमल सपने पलकों-पलकों तौल! जोगन, नैन मिले अनमोल! इन सपनों की बात निराली, दिन-दिन होली, रात दिवाली। इनसे माँग नदी-झरनों के मीठे-मीठे बोल! जोगन, नैन मिले अनमोल! सपनों का क्या ठौर-ठिकाना, जाने कब आना, कब जाना। नयन झरोखों से तू अपनी दुनिया में रस घोल, जोगन, नैन मिले अनमोल।
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