धरती की छत तोड़कर,
एक पौधा बेजान-सा आकार,
सूर्य की लालिमा से प्रोत्साहित
उठ रहा है देखने संसार।
बादलों ने चुनौतियाँ दीं
पत्थर की बूँदें बरसा कर,
सूरज ने मुख मोड़ लिया
पानी की बूँद से तरसा कर।
तेज़ हवाओं ने भी अब
कोशिश की कमर तोड़ने की,
इसने जड़ पसार लीं यहाँ
एक पहल की ख़ुद को जोड़ने की।
हार गए प्रकृति के दूत
धरती ने भूकंप का उपहार दिया,
अपनी मज़बूत साहस जड़ों का
नन्हे-से पौधे ने विस्तार किया।
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