नन्ही-सी बच्ची (कविता)

ख़ुशी का मैंने कोई घर नहीं देखा,
एक नन्ही-सी बच्ची को मैंने आज रोते देखा।
माँ का आँचल भी भीग गया दुःख से,
जब ख़ुद के टुकड़े को यूँ बिखरते देखा।
इस नन्ही-सी बच्ची ने क्या देखा है,
जो ख़ुदा ने ये दिन दिखाया है।
रो रही है वो बच्ची,
आख़िर क्यों बेटी रोए, दर्द दिखाया है॥

ख़ुशी का मैने कोई घर नहीं देखा,
एक नन्ही-सी बच्ची को मैंने आज रोते देखा।
आज फिर मैने एक माँ को लाचार देखा,
जो अल्लाह करे वो ही होगा,
दुःख में भी एक विश्वास को देखा।
कुछ रोज़ पहले तो मैने,
उस बच्ची को हँसते मुस्कराते देखा था,
ये क्या हुआ कि इन्हीं आँखों ने आज उसे रोते देखा॥

घर पर सभी को उसके जीवन की
उम्मीद बँधा के आया हूँ,
ख़ुदा ही नहीं मेरे भगवान से भी
उसके लिए दुआ करके आया हूँ।
दुःख मे डूबी उस माँ ने रोते हुए
हमें खाना भी खिलाया है॥

भगवान करे उस माँ के आँसुओं को
उसका अल्लाह भी देखें,
और बेटी को तंदुरुस्ती अता फरमाएँ।
बेटी के चेहरे पर माँ के लिए तो
माँ के चेहरे पर बेटी के लिए पीड़ा थी,
सचमुच दर्द की ये तस्वीर मन्दिर मस्जिद की हार थी॥

डॉक्टर ने कहा बहुत रूपए लगेंगे, ऑपरेशन होगा,
माँ ने कहा वो भी लाकर देंगे ये तो कहो जीवन होगा।
पर छलक गए माँ के आँसू मेरे सामने,
जब बताई डॉक्टर की ऑपरेशन से जुड़ी बातें,
बेटी होनी चाहिए आपकी अठारह की सानी।
रो पड़ी माँ जब कहा क्या करूँ कि
हो जाए बारह बरस की बेटी अठारह की सानी॥

ख़ुशी का मैंने कोई घर नहीं देखा,
आज मैंने एक नन्ही बच्ची को रोते देखा।
ज़िन्दा है कोई शक्ति तो वो बेटी ठीक हो जाए,
दर्द से मिले निजात मेरी उम्र भी उसे लग जाए।
पढ़ने वालों, मन्दिर हो या मस्जिद दुआ करना,
हो जाए वो बच्ची ठीक हरदम ये प्रार्थना करना॥

आती है स्कूल मेरे उसकी माँ खाना बनाने,
बने उसके हाथ के चावल कभी ख़ुशियों के निकले।
मेरे मालिक परवरदिगार, मेरी दुआ मे इतना असर करना,
वो बेबी हो जाए बिल्कुल ठीक, इतना रहम करना॥


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