स्त्री का स्त्रीत्व,
नारी का नार्यत्व,
ममता का ममत्व,
बहिन का अपनत्व,
जो इन सबका जानते महत्त्व,
हृदय में उनके बसता सत्त्व।
गर यशोदा न होती तो,
अपूर्ण था बुद्ध का बोधिसत्व।
लेकिन पुरुष तुम
कब पहचानोगे अपना कर्तव्य।
स्त्री का स्वाभिमान, उसकी अस्मिता बनाए रखना है हमारा दायित्व।
लेकिन कुछ पुरुष जिनके अंदर बैठा है पशुत्व।
ख़त्म कर दो अपने अंदर का दानवत्व।
नारी का सम्मान करो तुम,
अगर अंतर्मन में यदि लेशमात्र भी है मनुष्यत्व।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते में था देवत्व।
अब रह गई ये केवल कहने की बातें,
पहले दे दो तुम उसको अधिकारों में समत्व।
जीत पाओगे उसके मन को यदि भाव है प्रेमत्व।
जग बिन उसके रह जाए अधूरा, न हो सृष्टित्व।
नर भी उसके बिना अधूरा, न हो जग में पूर्णत्व।
यह सब उर में बस गया हो तो,
समझ पाओगे नारी का महत्त्व।
उसके बिना न जग का न ही नर का कोई अस्तित्व।।
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