नारी (कविता)

ईश्वर की अनुपम अद्भुत कृति,
विनम्र सहनशील गुण प्रभृति।
अपार अथाह प्रेम धारणी,
पद गृहस्वामिनी नियति निर्भृति।

नारी तू नहीं मात्र शृंगार निमित्त,
सरस प्रेममय भाव प्रधान चित्त।
लावण्या नाज़ुक लता सी कोमल,
साहित्य सृजन की प्रिय कवित्त।

कुप्रथाओं कुरीतियों पर प्रहार कर,
खोल पँख आकाश को मुट्ठी में भर।
तोड़ वर्जनाओं को भर तू उड़ान,
प्रतिबद्ध लक्ष्यों में रात्रि विहान कर।

दृढ प्रतिज्ञ भाव से कर शृंगार,
प्रसाधित हो नेत्रों में भर अंगार।
अखंडित रहे तेरा स्वाभिमान,
दुर्बलताओं को त्याग बन खंगार।।


रचनाकार : सीमा 'वर्णिका'
लेखन तिथि : 4 फ़रवरी, 2021
यह पृष्ठ 297 बार देखा गया है
स्रोत :
पुस्तक : अभिव्यंजना काव्य संग्रह
पृष्ठ संख्या : 74
प्रकाशन : सन्मति पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
संस्करण : 2021
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