आया नवरात्र का त्यौहार, बज रहे ढ़ोल नगाड़े,
लूँ माँ का आशीष, माँ आयी है मेरे द्वारे।
झूम रही सारी धरती, हर्षित हुआ यह चमन,
नवरात्र का पर्व आया, महक उठा मेरा मन।
जल रहे धुप और दिए, पवित्र हुआ परिवेश,
माँ के पावन आँचल में, दुःखी न होगा दरवेश।
माँ के मन मंदिर में, नहीं होगा कोई द्वेष,
नवरात्र के इस पर्व पर, मिट जाएँगे सारे क्लेश।
इस वर्ष के नवरात्र पर, नाचे मेरा मन आँगन,
माँ दुर्गा के नौ स्वरुप, हैं अति ही मनभावन।
माँ अम्बे के आशीष से, ख़ुश होगा यह सारा जहान,
सपने सभी के होंगे पुरे, मिलेगा ख़ुशियों का सोपान।
होगा असुरों का विनाश, महिषासुर का दमन,
इंसान को होगा फिर, इंसानियत से लगन।
खिलेंगे ख़ुशियों के फूल, शांति का होगा आचमन,
मिटेगा वैमनश्य, मानवता का होगा आगमन।
धर्म की होंगी जीत, अधर्म की होंगी हार,
पृथ्वी से होगा फिर, सारी बुराइयों का संहार।
संस्कारों की बहेगी सरिता, धर्म की बहेगी बयार,
न रहेंगे कदाचार, सदगुणों से महकेगा संसार।
माँ दुर्गा देगी आशीर्वाद, देवगण पुष्प बरसाएँगे,
गूँजेगा सारा ब्रह्माण्ड, सब मंगलगान गाएँगे।
पुण्य की होंगी जीत, धर्म की पताका फहराएँगे,
नफ़रतों का होगा ख़ात्मा, प्रेम की धारा बहाएँगे।
नारीत्व का होगा सम्मान, मिलेगी सही पहचान,
सफलता चूमेंगी क़दम, पुरे होंगे सारे अरमान।
नारी तो गौरी का स्वरुप, दुर्गा का है प्रतिमान,
नारी का होगा मान, तभी तो माँ देगी वरदान।
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
सहयोग कीजिएरचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें