साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
1998
माता दुर्गा का लगे, तीजा रूप महान। अर्धचंद्र है भाल पर, चंद्रघंटा सुजान॥ चंद्रघंटा सुजान, भुजा दस सोहे माँ के। मिट जाते सब पाप, करे दर्शन जो आके॥ कविवर कहे सुशील, शरण जो तेरी आता। खाली झोली भरे, कृपा से तेरी माता॥
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