नववर्ष की पावन बेला (कविता)

नववर्ष की पावन बेला,
शुभ संदेश सुनाती है।
भगा तम अंतर्मन से,
नव प्रभाती गाती है।
उदित शिशिर लालिमा,
धुँध परत हटाती है।
किंतु ठिठुरन-कंपन से,
तन को शीत सताती है।
किंतु-परंतु से भटकन,
अंतःकरण में आती है।
फिर भी भाव प्रखरता से,
नव लेखन रच जाती है।
आशा और आकांक्षाएँ,
मन अधीर बनाती है।
किंतु 'सर्वे भवन्तु सुखना'
गुनगुनी प्रभाती गाती है।
खट्टी-मीठी यादों में,
बीती साल जाती है।
नववर्ष मंगल वेला में,
सुगंध नव प्रभाती है॥


लेखन तिथि : 1 जनवरी, 2023
यह पृष्ठ 275 बार देखा गया है
×

अगली रचना

कविता


पिछली रचना

कठपुतली
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें