नज़रिया (कविता)

बदल दिया नज़रिया इंसानों ने सोचने का,
सही और ग़लत को ना पाए समझ,
जब सामने थी अपने मंज़िल,
तो भूल चुका था मंज़िल पाने का रास्ता,
कुछ ना समझा तो बोल उठा बन्दा,
यह तो है उलटफेर क़िस्मत का,
थक गए वो ये सोच सोचकर बार-बार,
कि कर क्या दिया क़िस्मत ने यार,
क्या बताऊँ यारों,
बदल दिया नज़रिया लोगों ने,
क़िस्मत के प्रति यार...
नज़रिया, नज़रिया, नज़रिया
बदल दिया है सोचने का हर किसी ने यार॥


लेखन तिथि : जून 2009
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