निवेदन (कविता)

डॉक्टरों मुझे और सब सलाह दो
सिर्फ़ यह न कहो कि अपने हार्ट का ख़याल रखें और
ग़ुस्सा न किया करें आप—
क्योंकि ग़ुस्से के कारण आई मृत्यु मुझे स्वीकार्य है
ग़ुस्सा न करने की मौत के बजाय

बुजुर्गो यह न बताओ मुझे
कि मेरी उम्र बढ़ रही है और मैं एक शरीफ़ आदमी हूँ
इसलिए अपने ग़ुस्से पर क़ाबू पाऊँ
क्योंकि जीवन की उस शाइस्ता सार्थकता का अब मैं क्या करूँगा
जो अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर एक पीढ़ी पहले
आपने हासिल कर ली थी

ग्रंथो मुझे अब प्रवचन न दो
कि मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए
न गिनाओ मेरे सामने वे पातक और नरक
जिन्हें क्रोधी आदमी अर्जित करता है
क्योंकि इहलोक में जो कुछ नारकीय और पापिष्ठ है
वह कम से कम सिर्फ़ ग़ुस्सैल लोगों ने तो नहीं रचा है
ठंडे दिल और दिमाग़ से यह मुझे दिख चुका है

ताक़तवर लोगों मुझे शालीन और संयत भाषा में
परामर्श न दो कि ग़ुस्सा न करो
क्योंकि उससे मेरा ही नुक़सान होगा
मैं तुम्हारे धीरोदात्त उपदेश में लिपटी चेतावनी सुन रहा हूँ
लेकिन सब कुछ चले जाने के बाद
यही एक चीज़ अपनी बचने दी गई है

डॉक्टर तो सदाशय हैं भले-बुरे से ऊपर
लेकिन बुजुर्गो ग्रंथो ताक़तवर लोगो
मैं जानता हूँ
आप एक शख़्स के ग़ुस्से से उतने चिंतित नहीं हैं
आपके सामने एक अंदेशा है सच्चा या झूठा
चंद लोगों के एक साथ मिलकर ग़ुस्सा होने का


रचनाकार : विष्णु खरे
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