ओ मेरे घर (कविता)

ओ मेरे घर
ओ हे मेरी पृथ्वी
साँस के एवज़ तूने क्या दिया मुझे
—ओ मेरी माँ?

तूने युद्ध ही मुझे दिया
प्रेम ही मुझे दिया क्रूरतम कटुतम
और क्या दिया
मुझे भगवान दिए कई-कई
मुझसे भी निरीह मुझसे भी निरीह!
और अद्भुत शक्तिशाली मकानीकी प्रतिमाएँ!

ऐसी मुझे ज़िंदगी दी
ओह
आँखें दीं जो गीली मिट्टी का बुदबुद-सी हैं
और तारे दिए मुझे अनगिनती
साँसों की तरह
अनगिनती इकाइयों में
मुझसे लगातार दूर जाते
मौत की व्यर्थ प्रतीक्षाओं-से!
और दी मुझे एक लंबे नाटक की
हँसी
फैली हुई
दर्शकशाला के इस छोर से उस छोर तक
लहराती कटु-क्रूर।

फिर मुझे जागना दिया, यह कहकर कि
लो और सोओ!
और वही तलवारें अँधेरे की
अंतिम लोरियों के बजाय!

इंसान के अँखौटे में डालकर मुझे
सब कुछ तो दे दिया :
जब मुझे मेरे कवि का बीज दिया कटु-तिक्त।

फिर एक ही जन्म में और क्या-क्या
चाहिए!


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