साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
बेंगलुरु, कर्नाटक
1998
रेत ने सोचा, कि समय उससे पहले फिसल जाएगा। और समय था कि रेत के फिसलने का इन्तज़ार कर रहा था। और इसी ऊहापोह में ये शाम भी बीत गई।
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