वे उठाते हैं कुदाल
और एक लकीर खींच देते हैं
पृथ्वी की भाग्यरेखा सी ख़ूबसूरत एक लकीर
वे कल्पवृक्ष नहीं सोचते
नहीं तलाशते कामधेनु
दिन में
अपनी आँखों पर यक़ीन होता है उन्हें
रातों में टॉर्च पर
धूप सेंकते
मेड़ पर गमछा डाले उनके गले से
इस तरह फूटता है कोई बोल जैसे
नश्वर पौधों पर उछाल आया हो
लोहे की मूठ घुमाते
डीज़ल पंप का गीत उन्हें प्यारा लगता है
जब तुतलाकर पौधे पानी माँगते हैं
खेत में खड़ी फ़सलों के सूखने का समय है
बहुत अँधेरी है रात
अभी
अभी लपकेगी
आसमान की ओर रोशनी टॉर्च की
और समझ जाएँगे वे कि पानी
खेत में पहुँच गया है।
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