प्रेम रंग में रंगी एक शहज़ादी,
मुहब्बत के हंसी रंग बुनती है।
पुष्प बिछाती राह में उसके,
काँटे ख़ुद के लिए चुनती है।
हाल बुरा उस शहजादी का,
नाम लिखती और मिटाती है।
ख़ुद ही ख़ुद से बातें करती,
ख़ुद ही हँसती और लजाती है।
नाम उसका पगली-दीवानी,
गली-गली वह फिरती है।
ऐसी है वह राधा रानी सी,
मीरा सी दीवानी दिखती है।
कुछ कहो उस पगली से,
कुछ और ही वो सुनती है।
ना जाने किसके रंग में रंगी,
उसे कान्हा ख़ुद को राधा बताती है।
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