पँख होते कहीं उड़ी चिड़िया (ग़ज़ल)

पँख होते कहीं उड़ी चिड़िया
फिर न पीछे कभी मुड़ी चिड़िया

क़ैद-ख़ाने में कुलबुलाती थी
अब तो आकाश से जुड़ी चिड़िया

कोई छुपता न उस की नज़रों से
ख़ूब चालाक है बड़ी चिड़िया

नाज़ उस पर किसे नहीं होगा
जब हिफ़ाज़त में है खड़ी चिड़िया


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