पेंटिंग (नज़्म)

रात कल गहरी नींद में थी जब
एक ताज़ा सफ़ेद कैनवस पर
आतिशीं, लाल सुर्ख़ रंगों से
मैं ने रौशन किया था इक सूरज...

सुब्ह तक जल गया था वो कैनवस
राख बिखरी हुई थी कमरे में


रचनाकार : गुलज़ार
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