साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
झेलम, पंजाब
1934
रात कल गहरी नींद में थी जब एक ताज़ा सफ़ेद कैनवस पर आतिशीं, लाल सुर्ख़ रंगों से मैं ने रौशन किया था इक सूरज... सुब्ह तक जल गया था वो कैनवस राख बिखरी हुई थी कमरे में
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें