पापा तो पापा ही होते (कविता)

यह पापा तो हम सब के पापा ही होते,
स्वयं से भी ज़्यादा हमारा ध्यान रखतें। ‌
हमें ज़िन्दगी जीने की यह कला बताते,
कभी कोई बहाना किसी से ना बनाते।।

सभी ज़रूरतों को यह पापा पूरी करतें,
नौकरी कोई ऑटो रिक्शा यह चलातें।
चाहें मेहनत मज़दूरी खेती बाड़ी करते,
जल्दी उठते और काम पर चलें जाते।।

पर्व त्योंहार पर नए-नए कपड़े दिलाते,
पढ़कर आगे बढ़नें को कहते ही रहते।
जज़्बात हम सभी के ये पापा समझते,
कभी अपने लिए वह कुछ न ख़रीदते।।

देखकर चेहरा बच्चें का फूले न समाते,
सजाकर सपने उनको पूरा वही करतें।
कोड़ी-कोड़ी जोड़कर यह शादी रचाते,
बेहतर करतें चाहें स्वयं वो बिक जाते‌।‌।

हारी बीमारी दुःख में लेकर यह भागते,
कभी बच्चों पे आँच कोई आनें न देते।
हमें सरल एवं सहज भाषा में समझाते,
कभी गुरु दोस्त माता जैसा प्यार देते।।


रचनाकार : गणपत लाल उदय
लेखन तिथि : 3 मार्च, 2022
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