सबको शुभ प्रातर्नमन, मंगल हो शुभकाम।
हर्षित पौरुष जन धरा, भक्ति प्रीति हरि नाम॥
हरित ललित कुसुमित प्रकृति, निर्मल भू संसार।
सज पादप पर्यावरण, शान्ति सुखद उपहार॥
सुभग चारु षड्ऋतु सृजित, भारत स्वर्ग समान।
अरुणाचल अरुणिम प्रथम, नवगति पथ उत्थान॥
अग्निवृष्टि भुवि दुपहरी, अतिवर्षण घनश्याम।
शीताकुल जग कंबलित, मधु वसन्त अभिराम॥
मन्द-मन्द शीतल पवन, अरुणिम शुभ मुस्कान।
भोर लजाती रवि किरण, शीत काल रति भान॥
कम्पन ठिठुरन गात्र जग, देख मुदित अरुणाभ।
शय्या तज प्रकटित मनुज, शान्त प्रकृति नीलाभ॥
अभिनंदन स्वागत उषा, जाग्रत तनु उत्साह।
नित्यकर्म से मुक्त जन, चला प्रगति पथ चाह॥
सुनहर सर्दी धूप नभ, अंगीठी सुखधाम।
गर्म चाय राहत बने, रहे पास अविराम॥
खिल शारद सरसिज सरसि, मानक जग मुस्कान।
नवप्रभात नव सोच बन, नवल शोध अरमान॥
परिवर्तन जीवन कला, विधि षड ऋतु निर्माण।
सहनशील सुख दुख बने, पौरुष जग कल्याण॥
हो सक्षम हर दशा में, अटल ध्येय सच राह।
ग़म ख़ुशियाँ समरूप हों, समझ सुफल मन चाह॥
रख धीरज संबल सुपथ, संयम बुद्धि विवेक।
करो सफल अनमोल पल, धवल कीर्ति अभिषेक॥
मन मोहन नव अरुणिमा, अस्ताचल रवि शाम।
दिनभर के पुरुषार्थ का, निर्णायक अवि राम॥
सपनों से सज्जित निशा, अरुणिम फलित प्रभात।
नव उमंग अभिलाष पथ, तोड़ विविध संताप॥
नया सबेरा सब सुलभ, मिले ख़ुशी मुस्कान।
परमारथ जीवन सफल, मिले सुयश सम्मान॥
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