पता पूछना (कविता)

जब भी मैं जाता हूँ अनजान जगहों पर
भूल जाना चाहता हूँ वे तमाम कहानियाँ
जो भय पैदा करती हैं

वे कहानियाँ जो पता नहीं कब सुनी थीं
वे हर वक़्त घूमती रहती हैं दिमाग़ में और
मन सिहर जाता है
किसी अख़बार की कोई ख़बर कौंध जाती है
कोई किरदार याद आ जाता है—
मुश्किल में फँसा हुआ
मैं उन्हें याद करने से इनकार करता हूँ
मैं उन्हें भूल जाना चाहता हूँ

अगर कहीं रास्ता भटक जाता हूँ तो
बिना कोई संकोच किए पूछ लेता हूँ पता
जानता हूँ कि
सही रास्ता बताने वालों की कहानियाँ कोई नहीं सुनाएगा।


रचनाकार : शंकरानंद
यह पृष्ठ 172 बार देखा गया है
×

अगली रचना

जगह की कमी


पिछली रचना

नींद का हासिल
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें