पतंग (नज़्म)

कभी कभी मन करता है
पतंग बन कर आसमान में उड़ने का
घर की टूटी छत पे चढ़ कर देखता हूँ
रंग-बिरंगी कई पतंगें
लेकिन नीले आसमान को
देख नहीं पाता हूँ मैं
दिखाई देती है बस मुझ को अपनी पतंग
आसमान और मिरे दरमियाँ
हाइल एक पतंग


रचनाकार : जयंत परमार
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