चीर कुहासे को सुहासिनी
सुषमा-स्वर्णकिरण—
आईं तुम मेरे जीवन में,
तन्वी ज्योतिवरण!
आईं कंपित, किंतु अशंकित
धर सुकुमार चरण;
कुसुमों से भर दिए नयन,
स्वप्नों से आलिंगन!
श्रद्धादेही, आशागेही,
स्नेही रूप-लता—
श्री लाईं तुम, शोभा लाईं,
लाईं मधुमयता!
तुम वह क्षमता, जिस पर
अवलंबित मेरी प्रभुता;
तुमने मुझे दिया मेरापन,
मेरी पत्नी बन!
पुलकित बाहुलता में
मेरी विह्वलता लेकर,
मेरी तृष्णा को दुलार की
कांति शांति देकर,
अनुरंजित कर दिवा-निशा
बरसा सनेह-केसर,
पार्थिव और क्षणिक जीवन को
करतीं मन-भावन!
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