पेड़ की व्यथा,
आँसुओं की कथा।
यह कुछ पीली मशीनें,
यह कुछ आरी सी कीलें।
रस्सी के फंदे,
जमघट मज़दूरों का,
पेड़ अकेला थर्रा पड़ा।
काटने वाले कुछ देर सुस्ताए थे,
पेड़ छाया देता रहा खड़ा।
सड़क निकलेगी,
कोई किसी को रहा था बता।
पेड़ की व्यथा।
यहाँ हवाई किले बँधाए जाएँगे,
नेता से लेकर अधिकारी सब खाएँगे।
विकास की सीमा में,
पेड़ भी आएँगे।
और जिन्हें सब मिल बाँट पचाएँगे।
ठेकेदार को इस बार कम हिस्सा आएगा,
यह बात रही सता।
पेड़ की व्यथा।
रेलवे की लाइन बिछानी है,
पहाड़ की मिट्टी उठानी है।
पेड़ मिट्टी की राह में है,
और बल अब फौरेस्ट गार्ड की
बाँह में है।
भराव फिर कैसे होगा?
लोगों को मुआवज़ा दे,
बातों का छौंक भी देना होगा।
बातों की ही तो खाते हैं,
फ़िलहाल लोगों को भाते हैं।
वह उतना बड़ा नेता,
जितना लोगों को मथा।
पेड़ की व्यथा,
आँसुओं की कथा।
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