फूलों की तरह लब खोल कभी (ग़ज़ल)

फूलों की तरह लब खोल कभी,
ख़ुशबू की ज़बाँ में बोल कभी।

अल्फ़ाज़ परखता रहता है,
आवाज़ हमारी तोल कभी।

अनमोल नहीं लेकिन फिर भी,
पूछ तो मुफ़्त का मोल कभी।

खिड़की में कटी हैं सब रातें,
कुछ चौरस थीं कुछ गोल कभी।

ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह,
हो जाता है डाँवा-डोल कभी।


रचनाकार : गुलज़ार
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