पिता की समाधि (कविता)

गाँव के घर में पिता की समाधि है
बखरी में
आँवले के पेड़ के नीचे
घर पहुँचता हूँ तो साफ़ करता हूँ
समाधि पर झड़े हुए पत्ते
धोता हूँ जल से
आस-पास की जगह बुहारता हूँ
दिया जलाता हूँ चढ़ाता हूँ फूल
तो पिता पूछते हैं जैसे
बड़े दिनों में आए बेटा
कहाँ भटकते रहे इतने दिन?

कुछ दिन गाँव में बिताकर
फिर लौटता हूँ
परदेश की नौकरी में
जाने से पहले दो घड़ी धूप में
बैठता हूँ समाधि के पास
विदा माँगता हुआ
पिता उदास हो जाते
कहते—अच्छा

समाधि को छोड़कर लौटता हूँ
जैसे घर में
गाँव में पिता को छोड़कर लौटता हूँ

नगर के घर में
कंप्यूटर है, फ़्रिज है, वाशिंग मशीन है

गाँव के घर में पिता की समाधि है।


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