पूछें वो काश हाल दिल-ए-बे-क़रार का (ग़ज़ल)

पूछें वो काश हाल दिल-ए-बे-क़रार का
हम भी कहें कि शुक्र है पर्वरदिगार का

लाज़िम अगर है शुक्र ही पर्वरदिगार का
फिर क्या इलाज गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार का

सय्याद भी पहुँच गया गुल-ची भी बाग़ में
ऐ हम-सफ़ीर आ गया मौसम बहार का

तदबीर क्या हो सब्र-ओ-शकेब-ओ-क़रार की
वो तुंद-ख़ू है बस का न दिल इख़्तियार का

क्यूँ-कर मिटे नदामत-ए-इज़हार-ए-आरज़ू
आलम नज़र में है निगह-ए-शर्मसार का

क़ानून किस ने बदला है क़ुदरत का शैख़-जी
दारू है अब भी मय ही ग़म-ए-रोज़गार का

उन नामियों के हश्र से इबरत-पज़ीर हो
बाक़ी नहीं निशान भी जिन के ग़ुबार का

रक्खेगा बे-क़रार तुम्हें भी तमाम उम्र
मरना तड़प तड़प के किसी बे-क़रार का

बे-लौस हो हवस से अगर इश्क़ ऐ 'वफ़ा'
है ज़िक्र-ए-यार में भी मज़ा वस्ल-ए-यार का


रचनाकार : मेला राम वफ़ा
  • विषय : -  
यह पृष्ठ 429 बार देखा गया है
×
आगे रचना नहीं है


पिछली रचना

बेगाना-वार हम से यगाना बदल गया
कुछ संबंधित रचनाएँ


इनकी रचनाएँ पढ़िए

साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।

            

रचनाएँ खोजें

रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें